शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

दयाकी दृष्टी सदाही रखना.! ५

Sunday, October 21, 2007

दयाकी दृष्टी सदाही रखना.! ५

अब राजूकी शादीके सपने वो देखने लगी। अपनेपर,इस घरपर,राजूको दिल दे सकनेवाली,प्यार करनेवाली लडकी वो तलाशने लगी। अव्वल तो उसने राजूको पूछ लिया कि उसने पहलेही किसीको पसंद तो नही कर रखा है। लेकिन वैसा कुछ नही था। एक दिन किसी समरोह्मे देखी लडकी उसे बड़ी पसंद आयी। उसने वहीं के वहीं थोडी बोहोत जानकारी हासिल की। लडकी दूसरे शेहेरसे आयी थी। उसके माँ-पिताभी उस समारोह मी थे। उसने खुद्ही लडकी की माँ को अपने मनकी बात बताई। लड़कीकी माँ को प्रस्ताव अच्छा लगा। दोनोने मिलकर लड़का-लडकी के बेमालूम मुलाक़ात का प्लान बनाया। रविवारके रोज़ लडकी तथा उसके माता पिता आशा के घर आये। राजू घरपरही ही था। सब एक-दूसरेके साथ मिलजुल कर हँसे-बोले। लडकी सुन्दर थी,घरंदाज़ दिख रही थी,और बयोलोजी लेकर एम्.एससी.किया था।
जब वे लोग चले गए तो आशा ने धीरे से बात छेड़ी। राजू चकित होकर बोला,"माँ!!तुमभी क्या चीज़ हो! क्या बेमालूम अभिनय किया! पहले लड़कीको तो पूछो। और इसके अलावा हमे कुछ बार मिलना पड़ेगा तभी कुछ निर्णय होगा!"
"एकदम मंज़ूर! मैं लड़कीकी माँ को वैसी खबर देती हूँ। हमने पहलेसेही वैसा तय किया था॥ लड़कीको पूछ्के,मतलब माया को पूछ के वो मुझे बताएंगी। फिर तुम्हे जैसा समय हो,जब ठीक लगे,जहाँ ठीक लगे, मिल लेना, बातें कर लेना,"आशा खुश होकर बोली। उसे लड़कीका बोहोत प्यारा लगा,'माया'।
राजू और माया एक -दूसरेसे आनेवाले दिनोमे मिले। कभी होटल मे तो कभी तालाब के किनारे। राजीवने अपने कामका स्वरूप मायाको समझाया। उसकी व्यस्तता समझाई। रात-बेरात आपातकालीन कॉल आते हैं,आदि,आदि सब कुछ। अंत मे दोनोने विवाह का निर्णय लिया। आशा हवामे उड़ने लगी। बिलकुल मर्जीके मुताबिक बहू जो आ रही थी।
झटपट मंगनी हुई और फिर ब्याह्भी। कुछ दिन छुट्टी लेकर राजीव और माया हनीमून पेभी हो आये। बाद मे माया ने भी घरवालोंकी सलाह्से नौकरीकी तलाश शुरू की और उसे एक कॉलेज से कॉल आया,वहीँ पर उसने फुल टाइम के बदले पार्ट टाइम नौकरी स्वीकार की,अन्यथा घरमे सास पर कामका पूरा ही बोझ पड़ता।
अपूर्ण

1 टिप्पणी: