शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

दयाकी दृष्टी !

Wednesday, December 19, 2007

दयाकी दृष्टी सदाही रखना ! ११

बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल मे भेजकर , अमरीका जानेकी इजाज़त देकर कोई गलती तो नही की,बार,बार उसके मनमे आने लगा। अब बोहोत देर हो चुकी थी। उसने हताश निगाहोंसे मिसेस सेठना को देखा। बच्चों को उच् शिक्षण उपलब्ध कर देनेमे उनकी कोईभी खुदगर्ज़ी नही थी । आशा ये अच्छी तरह जानती थी। मिसेस सेठना आगे आयी,उसके हाथ थामे,कंधे थपथपाए ,धीरज दिया। राजू चला गया। सात समंदर पार। अपनी माकी पोहोंच से बोहोत दूर।

आशा और उसका पती फिर एकबार अपनी झोपडीमे एकाकी जीवन जीने लगे। दिनमे स्कूलका काम, मुख्याधापिकाके घरके बर्तन-कपडे,फिर खुद्के घरका काम। उसके पतीको उसके मनकी दशा दिखती थी । गराजसे घर आते समय कभी कभार वो उसके लिए गजरा लाता,कभी बडे, तो कभी ब्लाऊज़ पीस।

दो साल बाद संजूभी अमरीका चला गया । आशा और उसके पतीकी दिनचर्या वैसीही चलती रही। कभी कभी कोई ग्राहक खुश होके उसे टिप देता तो वो आशाके लिए साडी ले आता। भगवान् की दयासे उसे कोई व्यसन नही था। एक बोहोत दिनों तक वो कुछ नही लाया। दीवाली पास थी। थोडी बोहोत मिठाई,नमकीन बनाते समय आशाको छोटे,छोटे राजू-संजू याद आ रहे थे। लड्डू, चकली,चेवडा,गुजिया बनाते समय कैसी ललचाई निगाहोंसे इन सब चीजों को देखते रहते, उससे चिपक कर बैठे रहते।

आँचल से आँसू पोंछते ,पोंछते वो यादों मे खो गयी थी । पती कब पीछे आके खड़ा हो गया, उसे पताभी नही चला। उसने हल्केसे आशाके हाथोंमे एक गुलाबी कागज़ की पुडिया दी तथा एक थैली पकडाई। पुडियामे सोनेका मंगलसूत्र था, थैलीमे ज़री की साडी.......!
आशा बेहद खुश हो उठी! मुद्दतों बाद उसके चेहरेपे हँसी छलकी!! वोभी उठी..... उसने एक बक्सा खोला.... उसमेसे एक थैली निकली, जिसमे अपनी तन्ख्वाह्से बचाके अपने पतीके लिए खरीदे हुए कपडे थे.... टीचर्स ने समय,समय पे दी हुई टिप्स्मेसे खरीदी हुई सोनेकी चेन थी.....
पतीकोभी बेहद ख़ुशी हुई। एक अरसे बाद दोनो आपसमे बैठके बतियाते रहे, वो अपने ग्राह्कोके बारेमे बताता रहा, वो अपने स्कूलके बारेमे बताती रही।

समय बीतता गया। बच्चे शुरुमे मिसेस सेठनाके पतेपे ख़त भेजते रहते थे। आहिस्ता,आहिस्ता खतोंकी संख्या कम होती गयी और फिर तकरीबन बंद-सी हो गयी। फ़ोन आते, माँ-बापके बारेमे पूछताछ होती। एक बार मिसेस सेठ्नाने आशाको घर बुलवाया और उसके हाथमे एक लिफाफा पकडा के कहा," आशा ये पैसे है,तेरे बच्चों ने मेरे बैंक मे तेरे लिए ट्रान्सफर किये थे। रख ले। तेरे बच्चे एहसान फरामोश नही निकलेंगे। तुझे नही भूलेंगे।"
अपूर्ण"

1 टिप्पणियाँ:

"अर्श" said...

bahot hi saralata se likha hai magar ye utne hi taralata se dil ki gaharai tak jata raha padhatewakt ... bahot khub likha hai aapne..

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